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लॉकडाउन में आप अपनी मन पसंद चीजों के साथ एक चीज और है जिसका इस्तेमाल रोज कर रहे हैं लेकिन इसके बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं है ।ये अतिरिक्त खुराक है डेटा की।देश में 80 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन धारक रोजाना डेटा का इस्तेमाल करते हुए जाने-अनजाने 'डेटावाद' के शिकार बन चुके है ।इस सदी में डेटावाद दूसरे तमाम वादों से सबसे ऊपर और सर्वग्राह्य है ,इसने समाजवाद और पूंजीवाद को भी अपने पीछे छोड़ दिया है ।
प्रख्यात लेखक युवाल नोवा हरारी की माने तो ये डेटावाद न उदार है और न मानवतावादी ,ये मानवताविरोधी भी नहीं है क्योंकि इसमें मानवीय अनुभवों के विरुद्ध होने जैसी कोई चीज नहीं है ।आप रोजाना जिस डेटा का बेरहमी से इस्तेमाल करते हैं वो डेटावाद मानवता के प्रति दो टूक प्रयोजनमूल रवैया अपनाता है ,जिसके तहत वो मानवीय अनुभवों के मूल्यों को अपनी डेटा प्रोसेसिंग प्रणाली के मुताबिक आंकता है ।यदि हम एक ऐसा कोई उपकरण पैदा कर लें जो यही काम और बेहतर ढंग से करता है तो इस बात का अंदेशा बढ़ जाता है की कहीं मानवीय अनुभव अपना मूल्य न खो दें ।काश हम कवियों,वकीलों,संगीतकारों और टैक्सी ड्राइवरों को भी किसी श्रेष्ठतर कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग से विस्थापित कर पाते ।
आज हम उस समय में पहुँच चुके हैं जहां अनुभूर्तियों के तमाम रक्षा कवच हट चुके हैं,हम ऐसे श्रेष्ठ उपकरण विकसित कर रहे हैं जो अभूतपूर्व कम्प्यूटिंग शक्ति और भीमकाय डेटा भण्डार का इस्तेमाल कर रहे हैं आप जिस गूगल और फेसबुक के सहारे अपने दिन काट रहे हैं उनके भीतर बैठे तंत्र सिर्फ इतना भर नहीं जानते की आप ठीक कैसा अनुभव कर रहे हैं बल्कि वे आपके बारे में असंख्य ऐसी चीजें भी जानते हैं जिनके बारे में आप सोच भी नहीं सकते । ।इसलिए बेहतर है की आप अपनी अनुभूतियों पर कान देना बंद कर दें और इसके बजाय दूसरे उपलब्ध उपकरणों की बात सुने, आप अपने खातों पर जो लिखते हैं,जो पसंद करते हैं,जो नापसंद करते हैं इन्ही के जरिये कुछ और तंत्र हैं जो ये बता सकते हैं की आप कैसे मतदान करते हैं अब आपका मन नहीं डेटावाद आपको संचालित करने लगा है और आपको इसकी भनक तक नहीं है । डेटावाद आजादी के पक्षधर होते हैं इसीलिए आजादी के अपरिमित फायदे भी गिनाते नहीं थकते ।
जिस तरह पूंजीवादियों का विश्वास है की सब कुछ आर्थिक उन्नति पर निर्भर करता है वैसे भी देतावादी मानते हैं की सारी अच्छी चीजें सूचना की स्वतांत्रता पर निर्भर करतीं हैं /अमेरिका और ररोस में जो विकास हुआ उसके आधार में सूचनाओं का उन्मुक्त परवाह ही तो है सूचनाओं की आजादी का ही प्रतिफल है की आज धड़ाधड़ मरने वाले अमेरिकी ईरानियों और नाइजीरियों के मुकाबले ज्यादा तंदुरुस्त,समृद्ध और सुखी हैं देतावादी कहते हैं की ाहर हम एक बेहतर दुनिया रचना चाहते हैं तो हमें डेटा को आजाद करना होगा क्योंकि यही विकास की कुंजी है ।
अगर आप फुरसत में हैं तो मनन जरूर करें की क्या सचमुच व्यक्ति एक भीमकाय व्यवस्था नहीं है ?क्या व्यक्ति खुद एक छोटी सी चिप नहीं बनता जा रहा ।हम रोजाना असंख्य ईमेल पढ़ते हैं,फोन सुनते हैं लेख पढ़ते हैं और अनगिनत डेटा अंशों [विट्स ]को अपने अंदर जमा कर लेते हैं लेकिन इस अदृश्य और असीमित दुनिया में हमें अपनी भूमिका का पता ही नहीं है हम देताजाल में इस कदर उलझ चुके हैं की तह तक जाने के लिए तैयार ही नहीं हैं ।
आपको याद होगा की कोई दो दशक पहले जापानी पर्यटक दुनिया बाहर में मजाक का पात्र सिर्फ इसलिए होते थे क्योंकि वे हमेशा अपने साथ एक कैमरा रखते थे और हर नजारे की तस्वीर खींच लेते थे आज हम सब जापानी बन चुके हैं और यही काम कर रहे हैं आज आप कुछ भी नया ेखते हैं तो उसे महसूस करने के बजाय सबसे पहले उसकी तस्वीर लेकर उसे अपनी फेसबुक,इंस्ट्राग्राम या किसी अन्य सोशल प्लेटफार्म पर अपलोड करने के लिए उतावले हो जाते हैं और देखने लगते हैं की बदले में आपको कितने लाइक और कमेंट्स मिले अब यह नीति वाक्य सा बन गया है की अगर आप कुछ अनुभव करते हैं तो उसे रिकार्ड कीजिये और साझा करिये ।
क्या आपको नहीं लगता की हाथी,घोड़े,शेर अपने अनुभवों की न तस्वीर लेते हैं और न उसे साझा करते हैं क्या उनके अनुभव मनुष्यों के अनुभवों से श्रेष्ठ नहीं होंगे ?।समस्या ये है की आज डेटा वाद के साथ रहना जीवन का सवाल बन गया है ।हमें खुद के सामने ये साबित करते रहना अनिवार्य है की हम अभी भी मूलयवान हैं और मूल्य अनुभव करने में नहीं बल्कि इन अनुभवों को मुक्त प्रवाहित डेटा बदलने में निहित हैं ।और इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं ।
@ राकेश अचल
लॉकडाउन की खुराक 'डेटा' **राकेश अचल **