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कोरोना संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन 'के छह दिन शेष बचे हैं लेकिन इसकी मियाद बढ़ाने को लेकर खुसुरपुसर शुरू हो गयी है ।इस खुसुरपुसुर के पीछे एक मकसद है ,और वो मकसद है जनता की नब्ज टटोलना ।केंद्र और राज्य सरकारें तो इसके लिए मानसिक रूप से पहले ही तैयार बैठीं है ।
लॉकडाउन को कोरोना प्रतिरोध की प्राकृतिक चिकित्सा कहा जा सकता है ।कोरोना विषाणु से लड़ने में अपने आपको अक्षम मान चुकी दुनिया के अनेक देशों ने संक्रमण की इस चैन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन का सहारा लिया,कहीं अपेक्षित परिणाम मिले और कहीं नहीं भी मिले ।भारत में लॉकडाउन से कोरोना की चाल थमी लेकिन जनजीवन ठहर गया ,अर्थव्यवस्था ठहर गई और ऐसी ठहरी कि अब उसे पटरी पर लाने के लिए सरकारों को ऐढी-चोटी का जोर लगाना पडेगा ।भारत में लॉकडाउन की अवधि 21 दिन घोषित की गयी थी ।
लम्बी विचार प्रक्रिया के बाद लेकिन हड़बड़ी में लागू किये गए लॉकडाउन से कोरोना को कम जनता को ज्यादा परेशानी हुई।बड़ी संख्या में लोगों को शहरों से पलायन करना पड़ा और अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा लेकिन इस सबकी अनदेखी कर देश ने ताली-थाली बजाकर और दीपक,टार्च,मोबाइल लाइट तथा मोमबत्तियां जलाकर अपनी एकजुटता का परिचय दिया ।मौत से आतंकित भीड़ की इस एकजुटता के आधार पर ही लॉकडाउन को आगे बढ़ाये जाने की तैयारी की जा रही है हालांकि इसके लिए राज्य सरकारों की सलाह लेने की औपचारिकता भी की जा रही है ।
कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन अकेला औजार नहीं है ,लेकिन सरकारों के लिए ये सुविधाजनक है क्योंकि वे जनता को संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंस का सही मतलब न सिखा पायी है और न जनता ने इसे मन से स्वीकार किया है। सरकारों को भी लॉकडाउन पर अमल करने के लिए पुलिस की लाठी का सहारा लेना पड़ रहा है ,जाहिर है कि कोरोना या किसी ऐसे ही घातक संक्रमण से लड़ने के लिए तालाबंद कर घरों पर हमेशा के लिए नहीं बैठा जा सकता ।हमें लॉकडाउन का विकल्प खोजना ही होगा खासतौर पर भारत जैसे देश में जहाँ न तो इंटरनेट की समुचित उपलब्धता है और न हमारा बहुत सा कामकाज इस नेट के ऊपर आधारित है ।घर बैठकर हम चुनिंदा सेवाओं का ही सुख ले सकते हैं और ये सुख भी देश की सीमित आबादी के लिए उपलब्ध है ।
जैसे कोरोना एक हकीकत ही ठीक वैसे ही ये भी हकीकत है कि लॉकडाउन के चलतेजीवन से जुड़ी अधिकाँश गतिविधियों को ब्रेक लगा दिया गया है। और मुमकिन है कि 14 अप्रेल के बाद देश इस लॉकडाउन से त्राहि-त्राहि कर उठे ।लॉकडाउन के दौरान दूध और दवा जैसी सेवाएं तक बाधित की गयी है और कुछ ही सेवाओं को ऑनलाइन खोला गया है ।ऑनलाइन सेवाओं का इस्तेमाल शहरी क्षेत्र की सीमित आबादी कर पा रही है।बहुसंख्यक आबादी ऑनलाइन सेवाओं का लाभ लेने में न समर्थ है और न उसके पास साधन हैं ग्रामीण क्षेत्रों में तो ऑनलाइन सेवा की कल्पना ही व्यर्थ है ।
जनस्वास्थ्य के लिए मजबूरी बने लॉकडाउन को आखिर आप कितने दिन बढ़ा सकते हैं ?अभी देश राष्ट्रवाद के 'मॉस हिस्टीरिया' के दौर से गुजर रहा है इसलिए लॉकडाउन का विरोध भी सीमित होगा ,होना भी नहीं चाहिए लेकिन सरकारों को लॉकडाउन के बाद के भारत की भी कल्पना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए । लॉकडाउन में कोरोना के अलावा शायद दूसरी बीमारियां अनिवार्य अवकाश पर भेज दी गयीं हैं ।सारा फोकस कोरोना पर है ,सारा बजट काट-पीट कर कोरोना को अर्पित किया जा रहा है ।इस पर विचार की जरूरत है ।
आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि 3 दिसंबर 1984 को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुई गैस त्रासदी में दो सप्ताह में 8 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और उसके दुष्प्रभावों से आज भी अनेक लोग जूझ रहे हैं उस समय भी इतनी बड़ी तैयारी नहीं की गयी थी जितनी आज कोरोना से निबटने के लिए की जा रही है ।कोरोना से अभी देश में जितने लोग संक्रमित हुए हैं वे भी भोपाल त्रासदी के शिकार लोगों से आधे हैं ।कहने का आशय ये है कि कोरोना निसंदेह एक भयानक त्रासदी है लेकिन ऐसी भी नहीं कि उससे निबटने के लिए हम घरों से अनंतकाल के लिए बाहर ही न निकलें ।हमें समुचित एहतियात के साथ सामन्य जीवन में वापस लौटने की भी तैयारी करना चाहिए ।सरकारें अपने स्तर पर आकलन के बाद इस विषय में समुचित निर्णय करेंगीं लेकिन हमें अभी सरकार के साथ खड़े रहने का अभ्यास बनाये रखना होगा ।
दुनिया में अभी तक कोरोना 1 ,431 ,706 लोग संकर्मित हैं।82 ,080 कालकवलित हो चुके हैं ,302150 ठीक भी हो चुके हैं ।आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि दुनिया में कोरोना से संक्रमित मरीजों की मौत का प्रतिशत 21 है जबकि ठीक होने का प्रतिशत 79 ,केवल ५ फीसदी मरीजों को दशा गंभीर है ,95 फीसदी संक्रमित लोग बेहद कम प्रभावित हैं ,यानि कुल मिलाकर स्थिति इतनी निराशाजनक नहीं है जितनी कि बताई जा रही है ।
सवाल ये भी है कि हमारी आवाजाही कब तक रोकी जा सकती है,कब तक रेलें ,हवाई जहाज और सड़कें परिवहन के लिए नहीं खोली जायेंगीं ।कब तक जनता एक-दूसरे से कटी रहेगी ।ये असंबद्धता कहीं उलटी गले न पड़ जाये ?
महामारी का असली स्वरूप इटली में देखने को मिला जहाँ सबसे ज्यादा 17127 लोग कोरोना के शिकार हुए । स्पेन में 14045 और महाबली अमेरिका में 12854 लोग मारे गए लेकिन दुनिया ने हिम्मत नहीं हारी है ।भारत में अभी 160 लोग ही कोरोना से नहीं बचाये जा सके ।लॉकडाउन का प्रतिफल कहिये कि हमारे यहां अभी संक्रमित मरीजों कि संख्या भी 5351 ही है हालांकि जैसे -जैसे भारत की जांच करने की क्षमता बढ़ रही है इस संख्या में भी इजाफा होने की आशंका है ,लेकिन भारत के हालात ऐसे नहीं हैं कि लगातार लॉकडाउन किया जाये ,इसे चरणबद्ध तरिके से कम किया जाना चाहिए ।सभी प्रकार की गतिविधियों के लिए एक नया प्रारूप बनाकर आरम्भ किया जा सकता है ।जनता धीरे-धीरे इसकी भी अभ्यस्त हो जाएगी ।लेकिन अंतिम निर्णय जनता को नहीं सरकार को ही करना है और सरकार आजकल जो कर रही है वो सब जनहित में कर रही है ,उस पर उंगली उठाई नहीं जा सकती क्योंकि इसे राष्ट्रद्रोह भी कहा जा सकता है ।
@ राकेश अचल
लॉकडाउन' को लेकर खुसुरपुसुर