तोर कलंक मोर पछिताऊ ,मुएहुँ न मिटिहि न जाइहि काऊ ॥

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कोविद -19  से लड़ते हुए देश को आज 35  दिन पूरे हो   गए लेकिन काम्ययाबी   के साथ नाकामियों का  जो कलंक देश के माथे पर लगा है उसे मेरा या  आपका प्रायश्चित कभी भी मिटा नहीं पायेगा क्योंकि लाकडाउन के 35  दिन  बाद  भी  भूख-प्यास से  तड़फते   लोग देश की सड़कों पर नंगे पैर सफर करते नजर आ रहे हैं ।
एक विषाणु के साथ बिना किसी तैयारी के शुरू की गयी जंग ने हम अच्छे-खासे भारतीयों को पंजाबियों गुजरातियों राजस्थानियों जैसी क्षेत्रीय पहचाने दे दी हैं ।हमारी चुनी हुई सरकारें भारतीयों की नहीं बल्कि टुकड़ों में विभाजित कर दिए गए अपने-पराये लोगों की मदद कर रही  हैं । लाकडाउन की आड़ में जो विभाजन हमारे सामने है वो कोविद-19  का प्रसार रोकने की कामयाबी के सामने बहुत बड़ी नाकामी है और उसके लिए मै यदि किसी को दोषी ठहराऊंगा तो आप झट से मेरी कॉलर पकड़ लेंगे ।
अब वो जमाना नहीं रहा कि आप पूरी मीडिया को अपनी गोदी में बैठाकर अपनी नाकामियों पर पर्दा डाल लें। अब पारदर्शिता का युग है सर ! आप एक पर्दा डालियेगा तो दस दुसरे उसे हटाने वाले खड़े हैं ।आप सूरत और अहमदाबाद की हकीकत नहीं छिपा सकते। आप आंध्र सरकार द्वारा कर्नाटक की सीमा पर तामीर की गयी कांक्रीट की दीवार नहीं छिपा सकते ऐसी दीवारें लोकतंत्र और लोकतंत्र की दुहाई देने वालों के मुंह पर कालिख और दामन पर कलंक हैं ।
लाकडाउन-2  की मियाद बढ़ाई जाए या नहीं जैसे मुद्दे पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा करते समय आप 35 दिन बाद भी पलायन करते मजदूरों को क्षेत्रीय पहचान देने के कुप्रयासों पर बात क्यों नहीं करते ? क्यों  नहीं कहते कि राज्य सरकारों का व्यवहार संकीर्ण और अमानवीय है ।लाकडाउन में यत्र-तत्र फंसे लोगों को के घरों पर  भेजने की कोई  समेकित नीति आपने क्यों नहीं बनाई ?क्यों नहीं तय किया कि पीड़ितों को मदद करने के लिए किसी की पूछ उठाकर नहीं देखा जाएगा ?
आज मै कोविद-19 अभियान के लिए की गयी खरीद-फरोख्त में किये गए किसी भ्र्ष्टाचार या घोटाले के बारे में एक शब्द नहीं कहूंगा क्योंकि मै जानता हूँ कि व्यापार और दलाली हमारे खून में है अभी तो मुद्दा देश को एक अघोषित विभाजन से बचाने का है।मुमक़िन कि आपको मेरी  बात पसंद न आये किन्तु हकीकत को अनदेखा करना मुझे सिखाया ही नहीं  गया ।हम महाराष्ट्र में साधुओं की हत्या को अलग नजरिये से देखते  हैं और यूपी में हुई हत्याओं को अलग नजरिये से । 
सरकार ! आपने सबको साथ लेकर चलने का कौल लिया था निभाइये । कोरोना तो आज है कल चला जाएगा लेकिन जो कलंक देश के दामन पर लग रहा है उसे धोने में पीढ़ियां गुजर जाएंगी  ।लाकडाउन की खामियां दुसरे-तीसरे दिन ही सामने आ गयी थीं इन्हें फौरन सुधारा आ सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।देश के सामने वो ही मंजर बार-बार सामने आ रहा है जो 27  मार्च को देश ने देखा था ।आप किस्मत वाले हैं क्योंकि देश उदार है सहनशील है उसके सब्र का बाँध बहुत मजबूत है ।कोई दूसरा देश होता तो कोविड-19  जाता या नहीं लेकिन आपको अपनी बोरी-बिस्तर जरूर बाँधना पड़ता। अभी भी माय है सम्हल जाइये देश को जातियों सीमाओं में बाँटने से रोकिये ।हम उम्मीद कर सकते हैं कि लाकडाउन में अब न कोई फंसेगा  और यदि फंसेगा तो उसे बिना किसी भेदभाव के इमदाद मिलेगी । उसे अपने घर नंगे पांव छाले और निराशा लेकर नहीं जाना पडेगा ।लाकडाउन -३ लागू करने से  पहले तमाम खामियां दूर हो जाना चाहिए । इति मित्थं ।
@ राकेश अचल