आंकड़ों का इंद्रधनुष और हम   *****************

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भारतीय जनमानस आंकड़ों का मुरीद है और इसीलिए पिछले सात दशक से ये खेल चल रहा है,लेकिन इस सदी की सबसे बड़ी आपदा के समय भी सरकारें आंकड़ेबाजी का तिलस्म खड़ा कर परेशान जनता को मुदित करने से पीछे नहीं हट रही .२० लाख करोड़ के पैकेज को प्रतिदिन जनता के सामने ऐसे परोसा जा रहा है जैसे इन आंकड़ों से सारे स्नाक्तों का निवारण होने जा रहा है और सड़कों पर घिसटता भारत एकदम से विश्व गुरु बनकर खड़ा हो जाएगा .
कांग्रेस ने आंकड़ेबाजी के बल पर पांच दशक से ज्यादा राज किया और अब यही सपना भाजपा का है .दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस ने जनता की बेचारगी को बख्श दिया था और भाजपा ने इसका भी इस्तेमाल कर लिया .यदि आप आंकड़ों में ही भरोसा करते हैं तो आपको इन्हें समझने की आदत भी डालना चाहिए ,आप एक बार इन आंकड़ों का सच समझ गए तो जान जाएंगे कि सरकारें अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए कैसे इन आंकड़ों का इस्तेमाल करतीं हैं ?
अब कोरोना को ही लीजिये. पिछले ढाई महीने में कोरोना से दुनिया में 316671  लोग मारे जा चुके हैं और  ४८०१८७५ लोग संक्रमित हुए हैं,इसके मुकाबले भारत में अभी तक कुल ३०२५ मौतें हुई हैं और ९५६९८ लोग इससे संक्रमित हुए हैं ,लेकिन कोरोना को रोकने के लिए किये गए लाकडाउन से देश में कितने लोग मारे गए और कितने प्रभावित हुए हैं इसका कोई आंकड़ा इस देश को नहीं बताया गया .बताया भी नहीं जा सकता,क्योंकि इन आंकड़ों में ही सरकार की नाकामी छिपी है .
भारत की सरकार अकेली ऐसी सरकार है जिसे ये नहीं पता कि उसके देश में किस शहर में कितने मजदूर रहते और काम करते हैं या उनके परिवार के सदस्यों की संख्या कितनी है ?सरकार को यदि ये सब पता होता तो लाकडाउन लागू करने से पहले इन सबका इंतजाम कर लिया गया होता ,फिर जो तस्वीरें आप प्रतिदिन सड़कों पर देख रहे हैं ,ये शायद आपको नजर न आतीं ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ ?दरअसल केंद्र और राज्य सरकारों के पास ऐसा कोई आंकड़ा है ही नहीं कि कहाँ,कितने लोग काम कर रहे हैं ?सरकार ये जानती तो लाकडाउन नाकाम होता ही नहीं .सरकार को आज लाकडाउन के पचपन दिन बीतने के बाद भी पता नहीं है कि लाकड़ौन से प्रभावित लोगों की स्नाख्या कितनी है .
सरकार की नाकामी देखिये कि वो लाकडाउन के साथ ही ८० करोड़ लोगों तक मुफ्त राशन पहुंचने का दावा करती है फिर भी दस करोड़ लोग सड़कों पर निकल आते हैं भूख-प्यास से बिलबिलाते हुए ,उन्हें रोटी और अपने घरों तक जाने के साधन मांगने पर पुलिस की लाठी खाना पड़ती है .सरकारों को यदि इनकी संख्या का पता होता तो ये अराजकता पैदा ही नहीं होती .लाकड़ौन के दौरान लोग बेरोजगार क्यों हुए ,जबकि माननीय प्रधानमंत्री ने कारख़ानादारों से श्रमिकों को वेतन दें,घरों से बेदखल न करने की अपील की थी ,जाहिर है कि प्रधानमंत्री के इशारे पर ताली-थाली बजाने वलों ने ही उनकी वेतन देने और किर्या न मांगने की अपील को अनसुना कर दिया .
जब सरकार सब तरफ से असफल हुई तो आंकड़ों का पैकज जनता के सामने परोस दिया गया ,लेकिन अभी तक ये नहीं माना कि सरकार की नाकामी की वजह से देश में डेढ़ हजार से ज्यादा पदयात्री श्रमिक सड़क दुर्घटनाओं,बीमारी और भूख से मारे जा चुके हैं ,इनके आंकड़े आखिर कौन सहेजे,इसकी जरूरत भी क्या है?जो मर गया सो मर गया .जो भुगत रहा है सो भुगत रहा है. सड़कों पर प्रसव हो रहे हैं.जो मेहनतकश थे उन्हें भिखारी बना दिया गया है .इस अराजक स्थिति में यदि तथाकथित इंसानियत के पैरोकार न होते तो भगवान जाने क्या न हो गया होता !
सरकार ने कोरोना संकट और लाकडाउन के बहाने अपने छिपे एजेंडे  को अमलीजामा पहनाने में कामयाबी हासिल कर ली है .निजी क्षेत्रों के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं ,विदेशी पूँजी निवेश के लिए वे क्षेत्र भी खोल दिए गए हैं जो अब तक प्रतिबंधित थे .सरकार रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को कारपोरेट बनाने में नहीं हिचकी .कोयले से लेकर अन्य खनिजों को ही नहीं बिजली तक को निजी क्षेत्रों के लिए खोल दिया गया है .चूंकि संकटकाल है इसलिए सरकार को न संसद की चिंता है और न अदालतों की ,जनविरोध की फ़िक्र तो उसने कभी की ही नहीं .
लाकडाउन लागू करने में दिखाई गयी नासमझी के कारण सरकार ने पहले देश को डुबोया और अब उसे उबारने के नाम पर बेचने की साजिश की जा रही है और नाम दिया जा रहा है आत्मनिर्भरता का .सोशल डिस्टेंशिंग के नाम पर शिक्षा को चौपट करने की तैयारी कर दी गयी है. सरकार अब ई-शिक्षा के जरिये एक ऐसी पीढ़ी पैदा करना चाहती है जो स्वप्नदर्शी हो .अमा ! जब आपके शिक्षण संस्थानों में संसाधन ही नहीं हैं तो वे दुनिया का मुकाबला कैसे करेंगे .ई-शिक्षा तो ठीक वैसी ही होगी जैसी आज के अनेक मंत्रियों की है .आपको समझना होगा कि देश का नुक्सान जितना कोरोना की वजह से नहीं हुआ उससे कहीं ज्यादा सरकार की बदइंतजामी के कारण हुआ .कोरोना से तीन हजार मरे और सड़कों पर डेढ़ हजार .कोरोना से एक लाख से कम प्रभावित हुए और सरकार द्वारा लाकडाउन   घोषित करने से दस करोड़ से ज्यादा लोग .अर्थव्यवस्था पटरी से उत्तरी सो अलग .पचपन दिन बाद भी सरकार को समझ नहीं आ आरहा कि वो देश को लाकडाउन से बाहर कैसे लाये ? 
विशेष आर्थिक पैकेज  के परिणाम आने में कम से कम छह माह और अधिक से अधिक डेढ़ साल लगेगा ,तब तक नए आम चुनाव सर पर आ जायेंगे .इस बीच अनेक राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव हैं,उप चुनाव हैं,राज्य सभा के चुनाव हैं .सो जनता को इनमें उलझा दिया जाएगा .मै दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोरोना संकट के कारण देश में कोई चुनाव टलने वाला नहीं है .उद्धव ठाकरे के लिए विधान परिषद का चुनाव हुआ या नहीं ? मध्यप्रदेश में कोरोना सनकत के दौरान सरकार का तख्ता पलटा गया या नहीं,वहां नई सरकार बनी या नहीं?
हकीकत ये है कि सरकार ने कांच खोल दी है दुनिया   के सामने .[कांच खोलना बुंदेली का एक मुहावरा है]सरकार को अवसर की तलाश थी सो कोरोना के बहाने से मिल गया और वो जो बहुत पहले करना चाहती सो कर गुजर रही है .देश की संसद सुप्तावस्था में है,अदालतें लकडाउन का शिकार हैं और विपक्ष को काठ मार ही चुका है .मुझे हैरानी होती है कि देश की संसद में लोकसभा के  545  और लोक सभा के 245  सदस्यों में से एक ने भी संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर इस महासंकट पर विचार करने की मांग नहीं की .अद्भुद राष्ट्रवाद है भाई .सब घर बैठे वेतन लेने के लिए चुने गए हो क्या ?किसी के मुंह में जुबान है कि नहीं ?ये भी आंकड़े हैं गूंगों के जो आपको जानना चाहिए .किसी प्रदेश की विधानसभा के विशेष स्तर की मांग नहीं हुई ,होना भी नहीं चाहिए महासंकट से महँ नेता अपने आप निबट ही रहे हैं और निरीह जनता को निबटा भी रहे हैं .
मुझे पता है कि मेरे आज के इस लेख में आपको बहुत कुछ अव्यावहारिक लगेगा किन्तु यदि एक पंक्ति भी काम की  लगे तो बोलिये जरूर अन्यथा आपका नाम भी उन गूंगों की सूची में शामिल हो जाएगा जिनका जिक्र मैंने किया है .इस संकट  के बावजूद देश रहेगा ,सरकारें आती-जातीं हैं लेकिन जख्मों के निशान छोड़ जातीं हैं 
@ राकेश अचल