भूख-प्यास और आत्मनिर्भरता का आग्रह  *****

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पचास दिन से 'लाकडाउन' देश ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नए सन्देश को सुनकर राहत की सांस ली या नहीं लेकिन निराशा की लम्बी उसाँस जरूर ली .मोड़दी जी ने बड़े ठन्डे मन से अपना सन्देश दिया .मैंने भी उसे ठन्डे मन से सूना और ठीक बारह घंटे बाद उसपर प्रतिक्रिया दे रहा हूँ .मेरी प्रतिक्रिया उन तमाम भारतवासियों की प्रतिक्रिया से मेल खा सकती है जो बोलते नहीं हैं,लिखते नहीं हैं केवल भुगतते हैं और आज भी सड़कों पर भुगत रहे हैं ,भले ही प्रधानमंत्री जी उनकी इस पीड़ा को त्याग और तपस्या का नाम देकर उनके साथ छल कर रहे हों .
कोरोना विषाणु से निबटने के लिए अविवेकपूर्ण और अपरिपक्व तैयारियों के साथ देश में लागू किये गाये 'लाकडाउन ' के कारण देश की 130  करोड़ जनता में से 80  करोड़ जनता ने जो कष्ट भुगते हैं ,जो घाव देखें हैं उनपर 20  लाख करोड़ की राहत का पॅकेज कितना मरहम लगाएगा ये तो विशेषज्ञ जानें लेकिन हम तो इतना जानते हैं कि उन्होंने जो कुछ पहल की है उसका लाभ जब तक सड़कों पर भूख और प्यास से जूझती जनता तक पहुँचने में चार साल लग जाएंगे तब तक जनता कहीं की नहीं रहेगी .प्रधानमंत्री से पॅकेज की मांग सबने की थी ,सो उन्होंने दे दिया .अब किसको क्या मिलेगा ये उसकी किस्मत है .
कोई माने या न माने प्रधानमंत्री की दृषिट में कोरोना के साथ-साथ चुनाव का विषाणु भी है ,वे इसे भी जीतना चाहते हैं .प्रधानमंत्री ने अपने आधा घंटे के अति शास्त्रीय समबोधन में एक बड़ा हिस्सा भारत को आत्मनिर्भर बनाने के तौर-तरीकों पर खर्च किया .उनके पास बेरोजगार होकर सड़कों पर फंसे लोगों के लिए गिने-चुने और उलझे हुए शब्द ही थे .उन्होंने देश को लाकडाउन से बाहर आने के तौर-तरीकों की नहीं बल्कि अपने नाकाम हो चुके 'मेक इन इंडिया' की बात की .जबकि ये समय 'सेव् इन इंडिया' की बात करने का है .
प्रधानमंत्री देश के प्रधानमंत्री जरूर हैं लेकिन वे उस पीड़ा का अनुभव शायद नहीं करते जो आम आदमी के मन में पिछले पचास दिन से पनप रही है .लोग एक मुहल्ले से दुसरे मुहल्ले,एक गांव से दुसरे गांव,एक शहर से दुसरे शहर जाने के लिए मोहताज हैं .लोगों को अपने परिजनों का मुंह देखे बिना जीना पड़ रहा है .बाप बेटे से दूर है ,मान बच्चों से दूर .सबके सब असहाय .ऐसे लोगों के भारत के लिए प्रधानमंत्री के भाषण में कोई शब्द नहीं शामिल किया गया ,किया भी कैसे जाता ?सरकार अपनी अपरिपक्वता और नाकामी को आखिर स्वीकार कैसे करे ?
प्रधानमंत्री के भाषण में अब कोरोना कम आत्मनिर्भरता ज्यादा जगह पा गया है .वे अब लोकल को वोकल बनाने की बात करने पर विवश हैं क्योंकि जान चुके हैं कि अब ये लोकल ही उनकी जडों में मठा डालने वाला होगा ,क्योंकि लाकडाउन में इस लोकल ने ही तो सबसे ज्यादा शा है. नौकरी गंवाई है,आसरा गंवाया है.हजारों मील की पद यात्रा की है .बाक़ी ब्रांडेड िनिया तो अभी भी वातानुकूलित घरों में छिपा बैठा है और अगले कुछ महीने और बैठा रह सकता है .
यकायक बीमार हो चुके भारत को स्वस्थ्य बनाने के लिए जीडीपी का दस फीसदी राहत के नाम पर दाल देना कोई उपकार नहीं है. दुनिया के दूसरे देशों ने 28  फीसदी तक राहत दी है और जनता को खून के आंसू भी नहीं रुलाया है .भूखों नहीं मारा है,भिखारी नहीं बनाया है .मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री जी 'लाकडाउन ' के चक्रव्यूह में खुद उलझ गए हैं और इससे बाहर निकलने की कोई युक्ति उनकी समझ में नहीं आ रही है .उन्होंने सेना से फूल भी बरसवा लिए लेकिन जनता की आँखों के आंसू नहीं सूखे .पीपीई किट और ऍन 95  मास्कों के उत्पादन के बारे में वे एक बड़ा झूठ बोल गए लेकिन जनता तो सब जानती है कि भारत 2014  के पहले भी था  .
वात्विकता ये है कि सरकार ने जनता को राम भरोसे छोड़ दिया है. जनता बाबा बनाई जा रही है .आप लाकडाउन में केश कर्तनालय खोलेंगे नहीं,होजरी खोलेंगे नहीं ,इलेक्ट्रॉनिक्स खोलेंगे नहीं,बसें,ऑटो-रिक्शे चलाएंगे   नहीं ,लोगों को घर से बाहर जाने नहीं देंगे तो आपका भारत आत्मनिर्भर क्या घर बैठे हो जाएगा ?आप मान लीजिये कि अविवेकपूर्ण ढंग से हड़बड़ी में लागू किये गए लाकडाउन से भारत पूरे पचास साल पीछे चला गया है और इसका ठीकरा आप कांग्रेस के सर नहीं फोड़ सकते क्योंकि ये कांग्रेस का नहीं आपका ,आपकी मजबूत सरकार का फैसला है और इसका परिणाम भी आपको ही भुगतना पडेगा ,जनता तो भुगत ही रही है .
किसी देश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प बुरा नहीं होता,स्तुत्य होता है लेकिन ऐसे संकल्प तभी पूरे होते हैं जब आपकी जनता खुश हो,स्वस्थ्य हो,उसका मन प्रफुल्लित हो ,आज पूरा देश अवसादग्रस्त है .आज लाकडाउन के पचासवें दिन भी श्रमिकों पर लाठियां बरसाई जा रहीं है .आज भी लोग 'इंसानियत के सिपाही'बनकर सड़कों पर भूख-प्यास से मर रही जनता को खाना खिलाकर अपना लोक-परलोक सुधार रहे हैं लेकिन सरकार को इन सबकी चिंता नहीं. उसके चश्में में सड़कों के ये दृश्य नजर ही नहीं आते ..सरकार वो ही देखना चाहती है जो उसे रुचिकर लगता है .
भगवान करे २० लाख करोड़ के पॅकेज से उन पैरो के फफोले ठीक हो जाएँ जो हजारों मील की पदयात्रा से उभरे हैं.भगवान करे इस राहत पॅकेज से उन करोड़ों मजूरों की रोजी-रोटी वापस आ जाये जो अचानक छीनी गयी है ,भगवान करे वे कल-कारखाने फिर से चल उठें जो एक झटके में बंद हो गए हैं .भगवान करे हमारा सोनू तककी वाला फिर से अपने घर का बोझ उठाने लायक हो जाये ,भगवान करे कि बूढ़ा बाप अपने मीलों दूर बैठे बेटे से और माँ अपने बच्चों से मिलकर उन्हें गले लगा सके .यदि ये सब न हुआ तो आपके पॅकेज का कोई अर्थ नहीं है .बीमार देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मजबूर नहीं मजबूत बनाने की जरूरत है जो आप समझने के लिए तैयार नहीं हैं ,क्योंकि आप तो सत्ता पर दशकों तक अखंड रूप से बने रहने का सपना पालकर बैठे हैं .
@ राकेश अचल