कोरोना के खिलाफ जंग में सेना भी कूद पड़ी है सेना फिलहाल लाकडाउन-२ का ज्वार बनाये रखने के लिए कोरोना सेनानियों के ऊपर पुष्प वर्षा करेगी और उनके सम्मान में हवाई करतब दिखाएगी ।कोरोना जंग में सेना की इस भूमिका का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन देश को ये भी संख लेना चाहिए कि ३ मई को जो सेना फूल बरसाएगी वो ही सेना 'लाकडाउन-३'में जनता पर लाठियां बरसाने के काम में भी लगाईं जा सकती है ।
भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की रणनीतियों का मै शुरू से प्रशंसक रहा हूँ ।भाजपा हर अवसर के लिए एक सुविचारित रणनीति के साथ मैदान में उतरती है विपक्ष के पास भाजपा की योजनाओं का कोई तोड़ है ही नहीं ।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के अस्थि कलश हों या पुलवामा के बाद की गयी सर्जीकल स्ट्राइक सबका इस्तेमाल भाजपा बड़ी ही संजीदगी से करती आई है । हर घटना में राष्ट्रवाद का छौंक -बघार लगाकर उसे पार्टीहित में भुना लेना भाजपा के बाएं हाथ का काम है ।
विश्वव्यापी कोरोना संक्रमण के खिलाफ 'लाकडाउन-१' और 'लाकडाउन-२' बनाने और उसे लागू करने में भी सरकार से ज्यादा पार्टी सक्रिय रही ।कोरोना की आड़ में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और जीवनशक्ति बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय के काढ़ा वितरण तक में भी भाजपा की राजनीतिक सूझ-बूझ साफ़ दिखाई देती है ।कोरोना युद्ध में पब्लिक की पीठ सेंकने वाली पुलिस तक को सरकार ने अपने ढंग से स्तेमाल कर लिया है इसकी सराहना की जाना चाहिए ।लाकडाउन लागू करने में उजागर हुई नाकामियों पर पर्दा डालते हुए सरकार अब 'लाकडाउन-३' के दरवाजे पर खड़ी है ।लाकडाउन-३ पर कोई चिल -पौं न हो इसलिए सेना को करतब दिखाने के काम पर लगा दिया गया है ।
सेना फूल बरसाए या गोलियां ये सरकार के हाथ में है लेकिन सरकार की इस जादूगरी से जनता को बचाने का काम विपक्ष का है ।दुर्भाग्य से विपक्ष के पास सरकार के हथकंडों को नाकाम करने की कोई रणनीति न पहले थी और न अब है । असहाय जनता अब सरकार के रहमो -करम पर है ।सडक पर निकले तो कोरोना मारने को खड़ा है और घर में रहे तो भूख चबाने के लिए तैयार खड़ी है 42 दिन की नजरबंदी ने जनता का लोहा कुंद कर दिया है ।अब लाकडाउन में फंसे लोग अपने घरों तक पहुंचाए जाने को सरकार का अनुग्रह समझ रही है ।भूखी-प्यासी जनता आसमान से फूल बरसते देखकर हवाई जहाज़ों के करतब देखकर अपनी थकान को भुला दे तालियां बजाये और सरकार की जय-जय करे ।याद रखिये कि सेना पुष्पवृष्टि और हवाई करतब के अलावा बैंड वादन केवल राष्ट्रीय त्यौहारों या अपने स्थापना दिवस पर ही करती है
कोरोना के खिलाफ जंग में लगे हर छोटे -बड़े कार्यकर्ता का सम्मान होना चाहिए लेकिन साधनहीन कोरोना सैनिक इस नकली वाह-वाही से कब तक लड़ पाएंगे ?दिल्ली में एक नर्स के लाकडाउन के दौरान ड्यूटी पर जाते हुए दो चालान कर एक लाख का जुर्माना माँगा जा रहा है क्या ऐसे में कोई कोरोना सैनानी अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकता है ?कोरोना की आड़ में सरकार सियासी जंग भी लड़ रही है बंगाल सरकार के साथ केंद्र की रोजाना होने वाली मुठभेड़ इसका ज्वलंत उदाहरण है । जिलों को लाल हरा घोषित करनेमें ही सियासत हो रही है आंकड़ों का मकड़जाल किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा ।
सेना के पुरषार्थ का सियासी इस्तेमाल नया नहीं है जबसे पूर्व सेना अध्यक्षों को सत्ता में भागीदार बनाया गया है तब से ही सेना के शीर्ष पर बैठे लोग सरकार के इशारे पर असैन्य इस्तेमाल के लिए सहज ही राजी होने लगे हैं सेना सीमा के साथ दूसरे मोर्चों पर भी काम करे इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं हो सकता लेकिन जब अपने खिलाफ जन असंतोष को भटकने या दबाने के लिए सेना काम करती नजर आये तो संदेह होना स्वाभाविक है । कोरोना से लड़ाई में सेना के डाक्टर और दुसरे संसाधन काम में लिए जाने चाहिए ।सेना से बैंड बजवाने या पुष्पवृष्टि कराने से कुछ हासिलहोने वाला नहीं है ।दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा जिसने इस संक्रमणकाल में सेना का ऐसा इस्तेमाल किया हो ।
कोरोना के जनक चीन और महाबली अमेरिका ने भी सेना को बाहर आने के लिए नहीं कहा जबकि अमेरिका में तो 60 हजार लोग कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं ।देश को लाकडाउन से बाहर निकालने की कोशिश कीजिये सेना को सीमाओं के लिए ही काम करने दीजिये ।भूखी जनता ज्यादा दिन घरों में बैठकर मौत का सामना नहीं कर सकती ।नोटबंदी की तरह लोग अब तालाबंदी से भी मरना शुरू हो गए हैं ।मारतेहुए लोग किसी से नहीं डरते न पुलिस से न अन्य किसी बल से ।पुष्प वर्षा भी उन्हें भरमा नहीं सकती । असहमतियों का स्वागत है लेकिन शिष्टता की सीमा में क्योंकि मै भी पक्का राष्ट्रवादी हूँ सर
@ राकेश अचल
कोरोना के नाम पर सेना लग गई काम पर