*************
कोरोना के खिलाफ लाकडाउन लागू करने में पहले दिन से बरती गयी लापरवाही का खमियाजा देश के गरीब मजदूर आज भी अपनी जान देकर भुगत रहा है ,सरकार के पास इन मौतों के बदले में मुआवजे और अफ़सोस के अलावा कुछ नहीं है .सरकार अब भी ये मानने को तैयार नहीं है की उससे लाकडाउन लागू करने में हर चरण में भूल हुई है .औरंगाबाद के पास भूख और अमृत से भागते १६ मजदूरों की मौत से तो देश दहल गया है .इस गमजदा माहौल में कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने सरकार से देश को डर के माहौल से बाहर निकालने की महत्वपूर्ण अपील कर इस बात को रेखांकित कर दिया है की कोरोना को लेकर दुनिया की तरह देश में भी भय का ऐसा वातावरण बनाया गया है जिससे निजात पाना आसान काम नहीं है .
सरकार ने यदि लाकडाउन-१ के समय हुई गलतियों को लाकडाउन-२ में दूर कर लिया होता तो आज लाकडाउन-३ में बेक़सूर मजदूरों को मालगाड़ी से काटकर अपनी जान नहीं गंवाना पड़ती .लाकडाउन लागू करने में दिखाई गयी अपरिपक्वता ही का परिणाम है की मजदूर आज सात सप्ताह बाद भी शहरों से गांवों की और पलायन करने के लिए विवश भी हैं और अभिशप्त भी .सेकार ने इन मजूरों के बारे में सोचा ही नहीं और लाकडाउन लागू कर दिया .अब केंद्र और राज्य सरकारों को लाकडाउन खुद ही तोड़ना पद रहा है ,कभी विशेष रेलें चलाकर और कभी विशेष बसें चलाकर .विदेशों से प्रवासी भारतीयों को भी विशेष विमानों से घर ले आया गया है .
सरकार की हड़बड़ी की वजह से शहरों में जो भगदड़ मची उससे अराजकता के साथ ही गांवों की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है .भारत के गांव पहले से साधनहीन हैं ,अब उनपर इन बेरोजगार मजूरों और उनके परिवारों का बोझ भी अचानक बढ़ गया है .भूख और बेकारी से भागे इन अभागे मजूरों को उनके अपने गांव कितनी और कब तक रोटी दे पाएंगे ?गांवों में पहले से ही कोई वैकल्पिक रोजगार नहीं है और जो पारम्परिक खेती है उसकी दशा भी पहले से नाशाद दिखाई देती है .सरकार ने इन प्रवासी मजदूर परिवारों को जो राहत दी है वो ऊँट के मुंह में जीरे के समान है ,हकीकत ये है की दुर्दिन सिर्फ टले हाँ उन्हें समाप्त किया जा सकता है ..
कोई भी युग हो जान सबको प्यारी होती है ,इसलिए हर कोई जान बचाने के लिए आंधी,तूफ़ान और भूख की परवाह किये बिना भागा जा रहा है .भारत में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है .राज्य सरकारें दूसरे राज्यों में फंसे अपने मजदूरों को वापस लाने के गम्भीरर प्रयास कर रहीं है लेकिन मसला है की सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा .विशेष रेलें चलाई गयीं तो वे राजनीति का शिकार हो गयीं ,कुछ चलीं और कुछ चलने से पहले ही रोक ली गयीं .अब कोरोना से लड़ाई के बजाय भूख और बेरोजगारी से लड़ाई का सवाल बड़ा हो गया है .
कांग्रेस ने मान लिया है की आज की सरकार विपक्ष की बात करने में भरोसा नहीं करती इसलिए कांग्रेस ने अपनी तरफ से सरकार को लिख-पढ़ कर अपनी बात कहने का सिलसिला शुरू कर दिया है .कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को आज देश क शीर्ष पत्रकारों के साथ लगभग सवा घंटे तक बात कर ये प्रमाणित कर दिया की सरकार इस संवेदनशील समय में कांग्रेस ने अपनी भूमिका को भलीभांति पहचान लिया है .कांग्रेस ने सरकार पर सीधा कोई आरोप नहीं लगाया केवल निवेदन किया की सरकार देश को भी के वातावरण से बाहर निकाले तभी बात बनेगी .
कांग्रेस कहती है की कोरोना देश की केवल २ फीसदी बीमारी के लिए खतरनाक या जानलेवा है इसलिए जनता को हकीकत बताना चाहिए और सभी आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू करना चाहिए. कांग्रेस मानती है की जब तक सरका जनता के हाथ पर नगद पैसा नहीं रखती,तब तक बात बनने वाली नहीं है .और ये बात सही भी है ,मैंने राहुल को नरेंद्र मोदी जी की तरह पप्पू तो कभी नहीं कहा लेकिन मई मानता हूँ की अपरिपक्व होते हुए भी राहुल के पास एक विस्तृत राजनीतिक दृष्टि है ,यदि ऐसा न होता तो वे सवा घण्टे प्रेस का मुकाबला नहीं कर सकते थे .प्रधानमंत्री जी तो साधन सम्पन्न होते हुए भी कभी प्रेस से सीधे बतियाते ही नहीं ..वे एकतरफा संवाद करते हैं,कभी राष्ट्र के नाम सन्देश देकर या कभी मन की बात कर के .
कोरोना के खिलाफ तीन चरणों के लाकडाउन के बाद भी देश में सरकार की लड़ाई कितनी कारगर साबित हुई है ये बताने की कोई जरूरत नहीं है .,सड़कों और रेल पटरियों पर मरते लोग तथा शराब की दुकानों के बाहर लगी मीलों लगी लम्बी कतारें ये प्रमाणित करने के लिए काफी है की केंद्र और राज्य सरकारें अपनी भूमिका तय करने में कहीं न कहीं गलती कर बैठीं हैं और अब उन्हें सुधरने के लोए राजी नहीं हैं स्कूल,कालेज ही नहीं मंदिर के सामने लगे ताले इस बात की गवाही देते हैं की गलतियां अक्षम्य हैं .केंद्र राज्य सरकारों से मैत्री पूर्वक नहीं अपितु किसी बॉस जैसा व्यवहार कर रही है ,इसे बदले जाने की जरूरत है .एक गलती छिपाने के लिए आपकी और से की जाने वाली एक नयी गलती मुसीबत बनती जा रही है ,इसे तत्काल रोकिये अन्यथा देश कोरोना के साथ ही एक अराजक दौर में प्रवेश कर जाएगा ,अब कोरोना से घरों में कैद रहकर नहीं खुले में आकर लड़ना होगा और पूरे एहतियात के साथ जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग ,दवाएं और खुराक सभी एक साथ इस्तेमाल की जाएँ .
@ राकेश अचल
लाकडाउन ,मजदूर और मौत ***************