*दिल्ली हाई कोर्ट ने कर्मचारियों के महगाई भत्ते को रोके जाने को क्यों विधि विरूद्ध माना है ?*
निम्न कारणों से एक याचिका में फैसला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने, डी ए , पर रोक लगाने संबंधी आदेश को ,विधि विरूद्ध माना है।
1) संविधान के अनुच्छेद 360 के आधीन , महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा किसी भी प्रकार के वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है। अपितु, डी ए रोका गया है।
2) राज्य के अधीन कार्यरत, कर्मचारी का डी ए रोका जाना, संविधान के अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण है जो कि, व्यक्ति को सम्मान से जीने का मूलभूत अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 21 एक वृहद अनुच्छेद है, जीवन जीने के अधिकार में , मानव जीवन के सभी पहलू सम्मिलित है ।
3) वेतन प्राप्त करना, संविधान के अनुच्छेद 300 (A) आधीन एक सम्पत्ति का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को, प्रॉपर्टी से विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधीन ही वंचित किया जा सकता है। सरकार द्वारा, विधायिका द्वारा भत्ता रोकने संबधी कोई कानून नहीं बनाया गया है। ना ही विधि का बल रखने वाला ऐसा कोई नियम बनाया गया है। अपितु, डी ए रोका गया है।
4) आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 भी सरकार को ऐसी शक्ति प्रदान नहीं करता है, जिसके पालन में, आपदा के दौरान सरकार , वेतन को रोक सके या कुछ समय के लिए स्थगित कर सके।
5) विधि द्वारा स्थापित है कि, एक भी दिन के लिए वेतन को टालना, वेतन देने से निषेध करना है। वेतन प्राप्त के अधिकार को, शासन की तर्क रहित इच्छा पर किसी अनिश्चितकाल के लिए नहीं त्यागा जा सकता है। वेतन कोई पुरस्कार नहीं है, अपितु , एक निहित विधिक अधिकार है। कर्मचारी सेवा नियमों एवं संविधान के आर्टिकल 309 के आधीन भी, वेतन प्राप्त करना एक विधिक अधिकार है। वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए पी एक केयर फंड का उपयोग किया जा सकता है।
अतः स्पष्ट है कि, कर्मचारियों का डीए रोका जाना, आपदा प्रबंधन अधिनियम के आधीन प्राप्त शक्तियों का दुरूयोग एवं संविधान के अनुच्छेद 360 का उललघंन है।
(एन प्रदीप शर्मा बनाम वित्त मंत्रालय यूनियन ऑफ इंडिया)
अमित चतुर्वेदी
अधिवक्ता, उच्च न्यायालय
जबलपुर