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jii हाँ अब राजधर्म की पोल अपने-आप खुलने लगी है ।लाकडाउन में यत्र-तत्र फंसे मजूरों को उनके गृह राज्यों तक भेजने के लिए चलाई गयी रेलों के जरिये पोल खुल रही है ।लाकडाउन लागू किया आपने मजूरों को फंसाया आपने और जब उन्हें बाहर निकालने की नौबत आई तो सब एक-दुसरे का मुंह ताकने लगे ।रेल चलेगी तो किराया लेगी ही और जो लोग मुसाफिर हैं वे फ़टे हाल हैं फिर किराया दे कौन ?
हड़बड़ी में लाकडाउन करने वाली सरकार भूल गयी कि अधर में फंसे लोग मतदाता हैं उनसे किराया मांगना राष्ट्रधर्म नहीं है ।हक़ीकत समझने में देर लगी तो इस बीच मारी पड़ी कांग्रेस ने मजूरों के किराए के रूप में पार्टी की और से एक करोड़ रूपये देने का एलान कर मैदान मारने की कोशिश कर दिखाई ।कांग्रेस की इस पहल से सत्तारूढ़ भाजपा के अलावा राज्यों में सत्तारूढ़ सरकारों को भी लज्जा आई अब सब मजूरों के खिदमतगार बन गये हैं जबकि इसकी कोई जरूरत थी ही नहीं ।रेलों का इंतजाम केंद्र पीएम केयर फंड से आसानी से कर सकती थी लेकिन अक्ल भी तो घास चरने जाती है न कभी -कभी ।
मैंने हमेशा कहा है की देश में लाकडाउन लागू करने में जल्दबाजी की गयी और इन तमाम गलतियों को छिपाने के लिए रोज नयी गलतियां की जा रही हैं ।गलतियों को सुधारने के फेर में होने वाली हर गलती हास्यास्पद होती जा रही है ।इनके प्रमाण आप टीवी चैनलों पर देख ही रहे होंगे ।अविवेकी फैसलों की वजह से कंगाल हो यहीं सरकारें अब शराब की दुकाने खोले जाने के फैसले को लेकर भी आलोचना की शिकार बन रही हैं ।सरकारों इ आस अब शराब बेचने और सड़कें खोलने के अलावा कोई चारा बचा नहीं है ।आप अनुमान लगा सकते हैं की जब सरकारों की ये दशा है तो उन ८० करोड लोगों की क्या दशा होगी जिनके घरों में दो दिन का आटा -दाल नहीं होता !
बात राहत रेलों की हो रही थी सरकार सेना से फूल बरसवाने और एयर शो कराने बजाय रेलों की व्यवस्था का खर्च वहन करने को कह सकती थी ।
सार्वजनिक वितरण में हो रही अराजकता से निबटने में सेना का सहयोग माँगा जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।हो भी नहीं सकता था क्योंकि सरकार अपना राजधर्म तो निभाना ही नहीं चाहती थी लेकिन अब समझ आ गया है की तकलीफों से जूझ रही जनता ' वोटर ' भी है । और वोटर के लिए कुछ भी किया जा सकता है ।मै लगातार कहता आ रहा हूँ कि कोरोना हमारे साथ लम्बे समय तक रहने वाला है इसलिए सरकारों को कोरोना की आड़ लेने के बजाय जरूरी इंतजाम करते हुए देश के ऊपर लगे ताले खोल देना चाहिए ।कोरोना से लड़ रही दुनिया में ५५ दिन का लाकडाउन लगाने वाला भारत इकलौता देश है ।भारत ने कोरोना से लड़ाई मे देश की जनता का तेल तो निकाल लिया लेकिन देश के धनपशुओं को अपने साथ खड़ा नहीं कर सकी ।जो दान-अनुदान मिला भी वो दिखावे का है ।
हम उम्मीद करते हैं की देश के महान प्रधानमंत्री अपने चौथे राष्ट्रीय उद्बोधन में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हुए देश को पटरी पर लाने के लिए थाए जाने वाले कदमों से देश को अवगत कराएँगे इन कदमों में २०२४ के आम चुनाव जीतने का कोई गणित शामिल नहीं होगा ।लाकडाउन-३ देश के सामने ऐसी तमाम कड़वी यादें छोड़कर जाने वाला है जो राजधर्म को लेकर हमेशा संदर्भ के काम आएगा ।कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल भी लिख लें कि इस संक्रमण काल में उनकी भूमिका भी हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी ।उनहोने ने भी अक्षम्य गलतियां की हैं ।
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राजधर्म की पोल खुली अब ***( राकेश अचल )***