सरकारों की चाल चरित्र और चेहरा एक-ेककर सबके सामने आ रहा है .देश के टीब बड़े राज्यों की भाजपा शासित सरकारों ने एक तरफ दुसरे राज्यों में लाकडाउन में फंसे मजूरों को अपने घर बुलाने के लिए इंतजाम किये वहीं दूसरी तरफ राज्य में श्रम कानूनों में चुपके-चुपके ऐसे संशोधन कर दिए जो किसी भी लिहाज से श्रमिकों के हित में नहीं है .सरकार ने जो कुछ किया वो सब कारखानेदारों की भलाई के लिए किया .
श्रम कानूनों में संशोधन के लिए सरकारों ने जो समय चुना वो लाकडाउन का समय है जिसमें कोई सरकार के फैसलों के खिलाफ सड़कों पर नहीं आ सकता,अदालत नहीं जा सकता ,वैसे भी श्रमिकों के लिए अदालतें आधी रात को नहीं खोली गयीं हैं अब तक .श्रमिक संगठन और राजनितिक दल श्रम कानूनों में संशोधन का कागजी विरोध कर सकते सो करके बैठे हैं ,लेकिन कोई भी श्रमिकों का गला काटने से नहीं रोक सका .आपको याद दिलाना चाहता हूँ की पहले तो केंद्र सरकार ने कोरोना से लड़ाई के नाम पर अविवेकपूर्ण ढंग से लाकडाउन लागू कर देश के असंख्य श्रमिकों को सड़कों पर भूख-प्यास और हादसों में मरने के लिए विवश कर दिया और जैसे ही मौक़ा मिला तो उनकी गर्दनों पर गंडासे रख दिए .
मध्य्प्रदेश में किये गए संशोधन के बाद कारखाना अधिनियम 1948 के अंतर्गत कारखाना अधिनियम 1958 की धारा 6,7,8 धारा 21 से 41 (एच), 59,67,68,79,88 एवं धारा 112 को छोड़कर सभी धाराओं से नए उद्योगों को छूट रहेगी. इससे अब उद्योगों को विभागीय निरीक्षणों से मुक्ति मिलेगी. उद्योग अपनी मर्जी से थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करा सकेंगे. फैक्ट्री इंस्पेक्टर की जांच और निरीक्षण से मुक्ति मिलने का दावा है, उद्योग अपनी सुविधा में शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे. मध्यप्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम 1960 में संशोधन के साथ इस अधिनियम के प्रावधान उद्योगों पर लागू नहीं होंगे. इससे किसी एक यूनियन से समझौते की बाध्यता समाप्त हो जाएगी.यानि ये संशोधन बेशर्मी के साथ कारखाना मालिकों के हित में किया गया है .
एक और महत्वपूर्ण संशोधन से औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में संशोधन के बाद नवीन स्थापनाओं को एक हजार दिवस तक औद्योगिक विवाद अधिनियम में अनेक प्रावधानों से छूट मिल जाएगी. संस्थान अपनी सुविधानुसार श्रमिकों को सेवा में रख सकेगा. उद्योगों द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में श्रम विभाग एवं श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप बंद हो जाएगा. मध्यप्रदेश औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम 1961 में संशोधन के बाद 100 श्रमिक तक नियोजित करने वाले कारखानों को अधिनियम के प्रावधानों से छूट मिल जाएगी.ये संशोधन भी श्रमिक विरोधी है .
कारखानेदारों के हित के लिए एक और संशोधन किया गया है जिसके तहत मध्यप्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम 1982 के अंतर्गत जारी किये जाने वाले अध्यादेश के बाद सभी नवीन स्थापित कारखानों को आगामी एक हजार दिवस के लिए मध्यप्रदेश श्रम कल्याण मंडल को प्रतिवर्ष प्रति श्रमिक 80 रुपए के अभिदाय के प्रदाय से छूट मिल जाएगी. इसके साथ ही वार्षिक रिटर्न से भी छूट मिलेगी.पहले लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम 2010 के अंतर्गत जारी अधिसूचना के अनुसार श्रम विभाग की 18 सेवाओं को पहले तीस दिन में देने का प्रावधान था. अब इन सेवाओं को एक दिन में देने का प्रावधान किया गया है. दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में संशोधन के बाद कोई भी दुकान एवं स्थापना सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुली रह सकेगी. इससे दुकानदारों के साथ ही ग्राहकों को भी राहत मिलेगी. पचास से कम श्रमिकों को नियोजित करने वाले स्थापनाओं में श्रम आयुक्त की अनुमति के बाद ही निरीक्षण किया जा सकेगा.
सरकार श्रमिक विरोधी व्यवस्था के लिए जो कुछ भी कर सकती थी ,उसने किया,जैसे ठेका श्रमिक अधिनियम 1970 में संशोधन के बाद ठेकेदारों को 20 के स्थान पर 50 श्रमिक नियोजित करने पर ही पंजीयन की बाध्यता होगी. 50 से कम श्रमिक नियोजित करने वाले ठेकेदार बिना पंजीयन के कार्य कर सकेंगे. इस अधिनियम में संशोधन के लिए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया है.इतना ही नहीं कारखाना अधिनियम के अंतर्गत कारखाने की परिभाषा में विद्युत शक्ति के साथ 10 के स्थान पर 20 श्रमिक और बगैर विद्युत के 20 के स्थान पर 40 श्रमिक किया गया है. इस संशोधन का प्रस्ताव भी केन्द्र शासन को भेजा गया है. इससे छोटे उद्योगों को कारखाना अधिनियम के पंजीयन से मुक्ति मिलेगी. इसके पूर्व 13 केन्द्रीय एवं 4 राज्य कानूनों में आवश्यक श्रम संशोधन किए जा चुके हैं.
श्रम क़ानून में किये गए इन तमाम संशोधनों के बाद श्रमिकों के हाथ काट दिए गए हैं,अब उन्हें न श्रम निरीक्षक बचा सकता है और न श्रम न्यायालय ,वे वहां आसानी से पहुँच ही नहीं पाएंगे .सरकार ने निजी क्षेत्र के मज़दूरों को पूरी तरह से बंधुआ मज़दूर बना दिया है. दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में जो संशोधन हुआ उसमें 6-12 बजे रात तक दुकानें खुली रह सकती हैं, ये तमाम संशोधन उन गलतियों पर पर्दा डालने के लिए किये गए हैं जो लाकडाउन लागू करने में सरकार से हुईं .उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी कमोवेश यही सब हुआ है ,इससे लगता है की ये सब केंद्र के इशारे पर हो रहा है .मुमकिन है की दुसरे राज्य भी आने वाले दिनों में ऐसा करें .
इस मामले में विपस्क ने राष्ट्रपति महोदय को चिठ्ठी लिखी है लेकिन इससे श्रमिक विरोधी क़ानून पर अमल रुक जाएगा ये सम्भव नहीं है .मध्यप्रदेश माकपा के नेता बादल सरोज मानते हैं,कि श्रम कानून में संशोधन जन विरोधी हैं, शोषण बढ़ाने वाले हैं.लेकिन उनके या आपके मानने से क्या होगा ?मेरा आकलन कहता है कि जन विरोधी सरकारें आने वाले दिनों में श्रमिकों को निशाना बनाने के बाद देश के उस मध्यम वर्ग की गर्दनों पर भी गंडासा रखेगी जो बीते पचास दिनों से किसी अनजाने भ्रम में सरकार के कहने पर ताली और थाली बजाने के साथ ही समाजसेवा के पुण्यकार्य में लगाg है और सड़कों पर घिसटने के लिए मजबूर मजूरों को खाना खिला रहा है .इसलिए जागते रहो .अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाये रखो फिर चाहे उसकी जरूरत कोरोना के खिलाफ हो या सरकार की नीतियों के खिलाफ .मै तो बिना नागा काढ़ापान कर रहा हूँ .
@ राकेश अचल
शोषण के लिए बदलते क़ानून