अवतार से बंधी सरकारें

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कभी हँसी भी आती है और कभी विषाद भी होता है जब किसी सूबे का मुख्यमंत्री महासक्त के समय भी अपने नेता का स्तुतिगान करने से नहीं चूकता.बीती रात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश की जनता के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को दूसरी बार अवतार बताया तो कुछ ऐसा ही हुआ .मुख्यमंत्री जी भूल जाते हैं कि ये स्तुतियाँ करने का समय नहीं है ,ये समय चुनौती से निबटने का समय है. स्तुतियां आप होने वाले चुनाव के समय जी खोलकर कर लीजिये ,कोई रोकने वाला नहीं होगा .अभी तो इसे विराम देकर रखिये. 
कोरोनाकाल में जब अविवेकी लाकडाउन के पचास दिन बाद भी मजदूर जब सड़कों पर डैम तोड़ रहे हैओं ,अपने घर जाने के लिए भटक रहे हों तब किसी अवतार या वरदान का जिक्र हास्यास्पद होता है .मध्यप्रदेश के मजदूर भी बड़ी संख्या में इस आपदा के शिकार बने हैं .किसी सरकार को ये नहीं पता कि किस प्रदेश के कितने मजदूर ,किस राज्य में कार्यरत हैं. सब अँधेरे में लाठी भांज रहे हैं और इसका नतीजा है कि आज भी मजदूर घर जाने के लिए रेल,बस सेवा मांग रहे हैं और बदले में उन्हें मिल रहीं हैं लाठियां ..
दूसरी राज्य सरकारों की तरह ही मध्यप्रदेश की सरकार भी अपने राज्य में मजदूरों को पैदल चलने से नहीं रोक पाई है,उन्हें सीमा तक बसों द्वारा पहुँचाने के दावे इसीलिए खोखले लगते हैं .यदि सरकार ने मजदूरों के लिए एक हजार बसें लगाएं हैं तो वे हैं कहाँ /हम मुख्यमंत्री की सिर्फ इस बात के लिए सराहना कर सकते हैं कि उन्होंने शहरों से घबड़ाकर घर लौटे मजदूरों को बिना राशनकार्ड राशन देने और मनरेगा में जाबकार्ड बनाकर दने का ऐलान किया है .सरकार ने ऐसे मजदूरों क ेलिए समबल योजना का लाभ दिलाने का भी आश्वासन दिया है .ये अच्छी बात है 
दरअसल मजदूर अपने मन से अपना प्रदेश छोड़कर दुसरे प्रदेशों में नहीं जाते,जब उनके मूल प्रदेश में रोजगार नहीं मिलता तब उन्हें दूसरे प्रदेशों की और रुख करना पड़ता है ,इस लिहाज से इस समस्या की जड़ में राज सरकारों की नाकामी ही है .अब इस नाकामी पर पर्दा डालने की बेशर्म कोशिश की जा रहीं है .कल एक अंधभक्त कह रहे थे कि मजदूरों की घर वापसी को पलायन कहकर मोदी जी को बदनाम किया जा रहा है. अब ऐसे लोगों को कौन बताये कि मजदूर जब अपने घर वापस जाता है तो हंसी-ख़ुशी रेलों और बसों से जाता है ,घर वालों के लिए उपहार लेकर जाता है ,पैदल और भूखा-प्यासा पुलिस की लाठियां खाता हुआ नहीं जाता .
मजदूरों के लिए एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई है ,वे शहर से न भागते तो भूख उनकी जान ले लेती और शहर में रहते तो भी कोरोना मार ही डालता ,क्योंकि वे जिन परिस्थितियों में शहरों में रहते हैं वे हर जगह धाराबी जैसी ही हैं .अब एक बात तय है कि अविवेकीलाकड़ौन से मजदूर शहरों से निकलकर अपने गांवों की तरफ जा तो रहे हैं लेकिन उन्हें वहां भी रोटी और सुरक्षा मिल पाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है ,वे गर वापस नहीं लौटते तो शहरों के काम-धंधे की कमर टूटेगी .मजदूरों के घर जाने में जितना समय लग रहा है लौटने में भी उससे ज्यादा समय लगेगा .सरकार को  अब इन मजदूरों के लिए स्थाई और दीर्घकालिक योजना बनाना होगी .इनके हितसंरक्षण के लिए अंतर्राज्यीय परिषदें बनाना होंगी,इनका सकल लेखा-जोखा रखना होगा ताकि इनके साथ भविष्य में धोखा न हो सके .
मध्यप्रदेश सरकार ने लकडाउन के चौथे चरण में भी कुछ ऐसा मौलिक नहीं किया है जो दूसरे राज्यों से अलग हो. राज्य में सामान्य जन-जीवन लौटाने के लिए किये जाने वाले प्रबंध नाकाफी हैं .जब तक सभी गतिविधियां समेकित रूप से चालू नहीं होतीं तब तक इस स्नाक्त से बाहर आना आसान नहीं है .राज्य सरकार के सामने एक तरफ कोरोना संकट है तो दूसरी तरफ सरकार को बचाये रखने के लिए उप चुनाव कराने की चुनौती भी प्रदेश को दो समूहों में बांटने को लेकर ही सवाल किये गए हैं इसलिए लगता नहीं है कि सरकार होश में है .
पिछले दो महीने में मैंने देखा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान साहब में पूर्व के कार्यकाल जैसा न जोश है और वैसी प्रशासन पर पकड़ ही .वे न नियमों का पालन करा पा रहे हैं और न ही मशीनरी को कचाकचौबन्द कर पा रहे हैं. वे जितनी बार भी दो माह में जनता के समाने आये हैं थके-थके से जनर आये हैं ,इससे लगता है कि कहीं न कहीं,कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है ,उन्होंने कहने को सूबे की कमान तो सम्हाल ली है लेकिन उन्हें निशक्त बना दिया गया है .शिवराज को दोबार शिवराज बनाने में सहायक बने महाराज को इस नाजुक समय में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहिए. वे प्रशासन से ई-पास लेकर जनता के बीच जा सकते हैं ,शिवराज सरकार की भी मदद कर सकते हैं लेकिन वे तो मेरी तरह लाकडाउन का सौ फीसदी पालन करने में लगे हैं  .
लाकडाउन -4  का ये दौर बेहद संजीदगी का दौर है. अब सरकार यदि अवतारी निर्देशों के भरोसे रही तो प्रदेश का भत्ता बैठ जाएगा,बेहतर हो कि राज्य सरका अंतर्राज्यीय बस सेवा को फौरन भाल करे भले ही उसके लिए सार्वजनिक परिवहन का स्वरूप बदलना पड़े .ई-रिक्शा ,ऑटो ,तांगे सबको खाने-कमाने का मौक़ा दे अन्यथा सूबे में स्थिति अराजक हो जाएगी और यदि ऐसा हुआ तो पुलिस की लाठी भी इसे नहीं रोक पाएगी .
@राकेश अचल